बिहार विधानसभा चुनाव 2025: नतीजों के बाद ईवीएम धोखे के आरोप, एनडीए की संगठनात्मक जीत

बिहार विधानसभा चुनाव 2025: नतीजों के बाद ईवीएम धोखे के आरोप, एनडीए की संगठनात्मक जीत नव॰, 23 2025

नवंबर 16, 2025 को बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे घोषित हुए — और जो लोग सुबह 8 बजे मुजफ्फरपुर के मार्केट कमेटी ऑफिस में वोट गिनती देख रहे थे, उनकी आँखों में सवाल थे: ये नतीजे सच हैं? नहीं तो क्या ईवीएम में कुछ और ही लिखा हुआ है?

रात भर की चुप्पी, सुबह का झटका

चुनाव से एक दिन पहले, पटना के एनडीए और महागठबंधन के दफ्तरों में रात भर बैठकें चल रही थीं। नीतीश कुमार और भारतीय जनता पार्टी के नेता बैठकों में अपने नेतृत्व के लिए रणनीति बना रहे थे — जबकि तेजस्वी यादव और राष्ट्रीय जनता दल के नेता अपने विफल होने के कारणों की जांच कर रहे थे। एक तरफ एनडीए अपने दो साल के बूथ-स्तरीय संगठन को गिन रहा था, तो दूसरी तरफ महागठबंधन आंतरिक आंकड़ों को लेकर आश्वस्त था कि बाहरी एग्जिट पोल गलत हैं।

लेकिन जब सुबह 8 बजे मुजफ्फरपुर में गिनती शुरू हुई — साकरा और मिनापुर जैसे छोटे विधानसभा क्षेत्रों से — तो नतीजे एनडीए के पक्ष में आ गए। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों में एनडीए ने 125 सीटें जीतीं, जबकि महागठबंधन को महज 98 सीटें मिलीं। ये वो नतीजा था जिसे ज्यादातर विश्लेषकों ने अपेक्षा नहीं की थी, खासकर जब 20 साल का विपक्षी भावना का रुझान था।

ईवीएम पर आरोप: हर मशीन में 25,000 वोट पहले से लोड?

नतीजों के अगले दिन, राष्ट्रीय जनता दल ने पटना में एक बड़ी समीक्षा बैठक आयोजित की। इसमें लालू प्रसाद यादव, रबड़ी देवी, मिसा भारती और अन्य नेता मौजूद थे। लेकिन जो बात सबको हैरान कर गई, वह थी जगदानंद सिंह का बयान — जो पूर्व राज्य अध्यक्ष हैं।

"हर ईवीएम में 25,000 वोट पहले से लोड किए गए थे," उन्होंने कहा। "क्या लोकतंत्र एक व्यापार बन गया है, जहां धोखेबाजी जारी है?" उनके शब्दों ने बिहार के राजनीतिक माहौल में आग लगा दी। इस बयान के बाद, राज्य के कई जिलों में युवा कार्यकर्ता ईवीएम के बारे में सवाल उठाने लगे।

रॉबर्ट वड्रा का बयान: बैलट पेपर होते तो पूरा नतीजा उलट जाता

अगले दिन, रॉबर्ट वड्रा ने आईएएनएस को दिए एक विशेष साक्षात्कार में कहा, "अगर बिहार के चुनाव बैलट पेपर पर होते, तो नतीजे पूरी तरह उलट जाते।" उन्होंने याद दिलाया कि तेजस्वी यादव, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के रैलियों पर करोड़ों लोग आए थे। "लेकिन नतीजे ऐसे आए... ये साफ-साफ न्यायपूर्ण चुनाव नहीं था। लोगों का विश्वास टूट गया है। वे जरूर विरोध करेंगे।"

वड्रा के बयान के बाद, दिल्ली और पटना में एक छोटी सी आंदोलन शुरू हुई — लेकिन यह अभी तक किसी बड़े आंदोलन में नहीं बदल पाई। अधिकांश नेता इसे "राजनीतिक असंतोष" के रूप में देख रहे हैं।

एनडीए की जीत: दो साल की लगातार मेहनत का फल

एनडीए की जीत: दो साल की लगातार मेहनत का फल

क्या एनडीए की जीत बस धोखे का नतीजा थी? नहीं। भारतीय जनता पार्टी ने पिछले दो सालों में बिहार के हर गांव, हर पंचायत, हर बूथ पर अपना नेटवर्क बनाया। बूथ प्रमुखों को ट्रेनिंग दी गई, वोटर डेटाबेस अपडेट किए गए, और वोटर अपने घरों के बाहर वोट करने के लिए प्रेरित किए गए।

मनीकंट्रोल की रिपोर्ट के मुताबिक, यह संगठनात्मक जीत थी — न कि भ्रष्टाचार की। एनडीए के नेता समरत चौधरी, प्रेम कुमार और विजय सिंह ने अभी तक अपने नए विधायकों को एकजुट करने के लिए अपने घरों में बैठकें शुरू कर दी हैं।

एएपी का आरोप: 15 करोड़ का ब्राइब, नतीजों से पहले ही दिया गया?

इस बीच, आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह ने एक यूट्यूब वीडियो में आरोप लगाया कि बीजेपी ने नतीजों से पहले ही प्रत्येक उम्मीदवार को 15 करोड़ रुपये का ब्राइब दिया था। उन्होंने कहा, "हमने अपने विधायकों को निर्देश दिया है कि अगर कोई ऐसा कॉल आए या मीटिंग हो, तो उसे रिकॉर्ड कर लें।"

लेकिन अभी तक कोई वीडियो या रिकॉर्डिंग सामने नहीं आई है। एनडीए ने इन आरोपों को "काल्पनिक" बताया है।

क्या अब बिहार में नया राजनीतिक युग शुरू हो रहा है?

क्या अब बिहार में नया राजनीतिक युग शुरू हो रहा है?

ये चुनाव बिहार के राजनीति के लिए एक मोड़ है। दो साल पहले, किसी को नहीं लगा था कि एनडीए बिहार में वापस आएगा। लेकिन अब यह साबित हो गया है कि संगठन, लगातार मेहनत और बूथ-स्तरीय जुड़ाव एक बड़ी ताकत हैं।

महागठबंधन अब अपनी रणनीति को फिर से सोच रहा है। तेजस्वी यादव को विधानसभा के विपक्ष का नेता चुन लिया गया है — लेकिन अब उनके लिए सवाल ये है: क्या लोग फिर से उन पर भरोसा करेंगे? या फिर विश्वासघात का आरोप उनके लिए एक बोझ बन जाएगा?

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में ईवीएम में वोट लोड करने का आरोप क्या है?

राष्ट्रीय जनता दल के पूर्व अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने दावा किया कि हर ईवीएम में 25,000 वोट पहले से लोड किए गए थे। यह आरोप बिहार में चुनाव की पारदर्शिता के प्रति सवाल उठाता है, लेकिन अभी तक कोई आधिकारिक साक्ष्य या जांच रिपोर्ट नहीं आई है। चुनाव आयोग ने इसे "अधारहीन" बताया है।

रॉबर्ट वड्रा के बयान का क्या मतलब है?

रॉबर्ट वड्रा का दावा है कि अगर बिहार में बैलट पेपर का इस्तेमाल होता, तो नतीजे पूरी तरह उलट जाते। उनका तर्क है कि तेजस्वी यादव की रैलियों पर करोड़ों लोग आए थे, लेकिन नतीजे उलटे आए। यह बयान चुनाव के निष्पक्षता के प्रति आम लोगों के शक को दर्शाता है, लेकिन इसकी कोई आँकड़े या गवाही के साथ पुष्टि नहीं हुई है।

एनडीए की जीत का राज क्या था?

मनीकंट्रोल की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय जनता पार्टी ने पिछले दो सालों में पंचायत और बूथ स्तर पर अपना संगठन मजबूत किया। बूथ प्रमुखों को ट्रेनिंग दी गई, वोटर डेटा अपडेट किया गया, और ग्रामीण इलाकों में वोटर जुटाने की कोशिश की गई। यह संगठनात्मक जीत थी — न कि भ्रष्टाचार की।

क्या बिहार में अब एनडीए का नया युग शुरू हो रहा है?

हाँ। यह चुनाव बिहार के राजनीतिक नक्शे को बदल देने वाला है। एनडीए ने 20 साल के विपक्षी भावना के बावजूद जीत हासिल की है। अब नीतीश कुमार और भाजपा के बीच साझेदारी का रास्ता देखना होगा। यह नया सामंजस्य बिहार के भविष्य को आकार देगा।

महागठबंधन के लिए अब क्या रास्ता है?

महागठबंधन को अब अपने नेतृत्व और रणनीति को फिर से सोचना होगा। तेजस्वी यादव विपक्ष के नेता बने हैं, लेकिन उनके पास अब एक बड़ा चुनौती है: लोगों के विश्वास को वापस पाना। अगर वे ईवीएम के आरोपों पर जोर देंगे, तो उनका राजनीतिक बल कमजोर हो सकता है।